भारत में लागू गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) व्यवसायों के लिए दो मुख्य विकल्प प्रदान करता है: नियमित जीएसटी और कंपोजीशन स्कीम(Regular and Composition GST in Hindi)। चुनने का सही तरीका आपके व्यवसाय के आकार और प्रकार पर निर्भर करता है। आइए, इन दोनों विकल्पों की तुलना करें:
GST regular and composition difference in Hindi
1. टर्नओवर सीमा:
- नियमित जीएसटी: भारत में किसी भी व्यवसाय का सालाना टर्नओवर 40 लाख रुपये से अधिक होने पर उसे नियमित जीएसटी के तहत पंजीकरण कराना अनिवार्य है। कुछ राज्यों में विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए यह सीमा 20 लाख रुपये है।
- कंपोजीशन स्कीम: कंपोजीशन स्कीम के तहत पंजीकरण करने के लिए सालाना टर्नओवर सीमा भारत में 1.5 करोड़ रुपये और विशेष श्रेणी के राज्यों में 75 लाख रुपये है।
2. जीएसटी दरें:
- नियमित जीएसटी: नियमित जीएसटी के तहत विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के लिए अलग-अलग दरें लागू होती हैं, जो 5% से लेकर 28% तक हो सकती हैं।
- कंपोजीशन स्कीम: कंपोजीशन स्कीम के तहत एक फ्लैट दर लागू होती है, जो ट्रेडिंग व्यवसायों के लिए 1%, मैन्युफैक्चरिंग व्यवसायों के लिए 5% और रेस्टोरेंट्स के लिए 6% है।
3. रिटर्न फाइलिंग:
- नियमित जीएसटी: नियमित जीएसटी के तहत हर महीने जीएसटी रिटर्न फाइल करना अनिवार्य है।
- कंपोजीशन स्कीम: कंपोजीशन स्कीम के तहत व्यवसायों को तिमाही रिटर्न और सालाना रिटर्न दाखिल करना होता है।
4. रखरखाव और अनुपालन:
- नियमित जीएसटी: नियमित जीएसटी के तहत इनवॉइस जारी करना, रखरखाव करना और अनुपालन प्रक्रियाएं अधिक जटिल होती हैं।
- कंपोजीशन स्कीम: कंपोजीशन स्कीम के तहत अनुपालन प्रक्रियाएं सरल होती हैं और इनवॉइस जारी करने की आवश्यकता नहीं होती है।
5. कर क्रेडिट का लाभ:
- नियमित जीएसटी: नियमित जीएसटी के तहत इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का लाभ उठाया जा सकता है, जिससे कर देयता कम हो सकती है।
- कंपोजीशन स्कीम: कंपोजीशन स्कीम के तहत ITC का लाभ नहीं उठाया जा सकता है।
6. किसके लिए उपयुक्त?
- नियमित जीएसटी: बड़े व्यवसायों, जिनका टर्नओवर अधिक है, या जिनके लिए ITC का लाभ उठाना महत्वपूर्ण है, उनके लिए नियमित जीएसटी उपयुक्त है।
- कंपोजीशन स्कीम: छोटे व्यवसायों, जिनका टर्नओवर सीमा के अंदर है और सरल अनुपालन प्रक्रिया चाहते हैं, उनके लिए कंपोजीशन स्कीम उपयुक्त है।
GST regular vs composition in Hindi
भारत में छोटे कारोबारियों के लिए दो मुख्य जीएसटी व्यवस्थाएं हैं – नियमित जीएसटी और कंपोजीशन स्कीम(Regular GST vs Composition GST in Hindi)। इन दोनों ही व्यवस्थाओं के अपने फायदे और नुकसान हैं, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने व्यवसाय के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन करें।
आइए, एक तुलनात्मक तालिका के माध्यम से इन दोनों व्यवस्थाओं के प्रमुख अंतरों को देखें:
विशेषता | नियमित जीएसटी | कंपोजीशन स्कीम |
---|---|---|
पात्रता | ₹40 लाख (विनिर्माण) या ₹20 लाख (अन्य आपूर्तिकर्ता) से अधिक वार्षिक कारोबार वाले व्यवसाय | ₹1.5 करोड़ (विनिर्माण) या ₹75 लाख (अन्य आपूर्तिकर्ता) तक वार्षिक कारोबार वाले व्यवसाय |
जीएसटी दरें | आपूर्ति के प्रकार के आधार पर 5%, 12%, 18% या 28% | सभी कर योग्य आपूर्तियों पर 1%, 5% या 6% की समान दर (आपूर्ति के प्रकार पर निर्भर करता है) |
इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) | उपलब्ध | उपलब्ध नहीं |
रिटर्न फाइलिंग | मासिक या त्रैमासिक रूप से GSTR-1, GSTR-3B और अन्य रिटर्न दाखिल करना | त्रैमासिक रूप से GSTR-4 रिटर्न दाखिल करना (वार्षिक रूप से यदि कारोबार ₹50 लाख से कम है) |
रिकॉर्ड रखना | विस्तृत खातों और चालानों को बनाए रखना आवश्यक | सरल रिकॉर्ड रखने की आवश्यकता |
अनुपालन बोझ | अधिक जटिल | कम जटिल |
नियमित जीएसटी के फायदे:
- आप इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठा सकते हैं, जो आपके लागत मूल्य को कम कर सकता है और लाभप्रदता में वृद्धि कर सकता है।
- आप किसी भी प्रकार की वस्तु या सेवा की आपूर्ति कर सकते हैं।
- आपके पास बड़े ग्राहकों को आकर्षित करने का बेहतर अवसर हो सकता है जो इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाना चाहते हैं।
नियमित जीएसटी के नुकसान:
- अनुपालन बोझ अधिक जटिल और समय लेने वाला हो सकता है।
- आपको अधिक रिकॉर्ड रखने की आवश्यकता होती है।
- उच्च जीएसटी दरें आपके मुनाफे को कम कर सकती हैं।
कंपोजीशन स्कीम के फायदे:
- अनुपालन बोझ कम जटिल और समय लेने वाला है।
- आपको कम रिकॉर्ड रखने की आवश्यकता होती है।
- कम जीएसटी दरें आपके मुनाफे को बढ़ा सकती हैं।
कंपोजीशन स्कीम के नुकसान:
- आप इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ नहीं उठा सकते हैं।
- आप कुछ विशिष्ट वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति नहीं कर सकते हैं।
- आपको बड़े ग्राहकों को आकर्षित करने में कठिनाई हो सकती है जो इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाना चाहते हैं।