कुछ कहते हैं वरदान है, व्यापार को सरल बनाया है, तो कुछ हथिया है, कमर तोड़कर कमाई छीन ली है। लेकिन सच क्या है? क्या जीएसटी सचमुच में वरदान है या फिर बनी-ठनी हथिया? आइए आज उठाते हैं कलम, जीएसटी का ही एक गीत बनाते हैं। इस गीत में बजेंगे व्यापारियों के स्वर, उपभोक्ताओं की चिंताएँ, अर्थशास्त्रियों के तर्क, और सरकार के इरादे। तो तैयार हैं जीएसटी के मंच पर कदम रखने के लिए? आइए, सुनते हैं, गाते हैं, और समझते हैं जीएसटी की कहानी(Poem on GST in Hindi)!
जीएसटी, वो चार अक्षर, जिन्होंने भारत के व्यापार में क्रांति ला दी। एक ऐसा कर जो वस्तुओं और सेवाओं के मेले में घूमता है, कभी चाय की पत्तियों पर चढ़ता है तो कभी मोबाइल के बिल पर नाचता है। आठ साल बीत गए उसके लागू होने को, पर बहसों का शोर अभी भी थमा नहीं है।
इस कविता में हम जीएसटी के विभिन्न पहलुओं को छूएंगे, इसके लाभ और हानियों पर चर्चा करेंगे, और आम जनता पर इसके प्रभाव का विश्लेषण करेंगे। उम्मीद है कि यह कविता न केवल मनोरंजक होगी, बल्कि जीएसटी की समझ को भी बढ़ाएगी। तो बंधे रहिए, जीएसटी की गीत अब शुरू होने वाली है!
Table of Contents
Poem on GST in Hindi जीएसटी पर कविता, एक टैक्स की कहानी
- पहले की गतियों से मुक्ति, एक कर नए आयाम, जीएसटी का नाम गूंजा, व्यापार जगत में समाया। कंटीली झाड़ियों से छुटकारा, एकल बाजार बना नया, देश एक जुड़ा, टैक्स का स्वर हुआ ह्रदय का नया।
- नवनीत वसंत सी खुशियां, छोटे-बड़े सब आए साथ, कम्पोजिशन स्कीम का सहारा, कर का बोझ हुआ हल्का हाथ। डिजिटल पायदान चढ़कर, लेन-देन हुए पारदर्शी, रिफंड का झरना बहा, गरीबों के लिए सुखदशी।
- पर कुछ कांटे अभी बाकी, सुलझी पहेली अधूरी, इनवॉइस का जाल जटिल, रिटर्न भरने की मजबूरी। छूटों की सूची लंबी, समझने को लगते साल, कर सलाहकार का सहारा, टैक्स के जंगल में उजाला।
- एक देश, एक टैक्स, सपना अब हुआ सच, ईमानदारी से भरनी चाहिए, यही नई है वचन। डिजिटल क्रांति का साथी, जीएसटी ले आगे पंथ, कर चोरी पर लगाम कसें, सब बने देशभक्त।
- जीएसटी की कविता अभी अधूरी, भविष्य के तूफानों से लड़नी है, सरलता और सुगमता लाए, टैक्स का बोझ सबके लिए हल्का करे।
Poem on GST in Hindi जीएसटी पर कविता, एक पहेली का नया अध्याय
- एक नया सूरज, एक नया सवेरा:
जीएसटी आया, एक तूफान सा, बदली अर्थव्यवस्था की दिशा। राज्यों की सीमाओं मिटाकर, एक आयात कर का नया नशा। वस्तुओं, सेवाओं सब पे लागू, एक ही छतरी सबके लिए। सरलता का दावा, पर उलझनें भी, कर सुधारों का ये नया अध्याय।
- छूटों का जाल, क्रेडिट का खेल:
5%, 12%, 18% का जाल, भ्रम का, समझ का, उलझन का। क्रेडिट का खेल, रिफंड का चक्र, लागत, लाभ का गणित नया। मार्केट गूंजता, व्यापार हिलता, जीएसटी का ये नया दौर। उत्पादक, उपभोक्ता, सब सोचते, क्या होगा आखिर इस कर का भौर?
- डिजिटल क्रांति, टेक्नो घबराहट:
ऑनलाइन रिटर्न, चालान अपलोड, डिजिटल क्रांति, बहीखाता। टेक्नो घबराहट, समझ का अभाव, पुरानी आदतों का टकराव। सीए, सलाहकारों की मंडी, जीएसटी का ये नया पेंच। आधुनिकता का उजाला, पर छाया भी, कर सुधारों का ये नया सेंच।
- नवीन उम्मीदें, अनिश्चितता का तूफान:
नवीन उम्मीदें, सरलता का सपना, कर चोरी का अंत, विकास का गीत। अनिश्चितता का तूफान, लागत का बोझ, रोजगार का सवाल, उद्योगों का चीत्कार। जीएसटी का ये नया अध्याय, खुशियों का भी, गमों का भी, एक नया सफर। समय बताएगा, किसे मिला लाभ, किसे हुआ नुकसान, ये कर सुधारों का फल।
- जागरूक नागरिक, प्रगति का मार्ग:
जागरूक नागरिक, प्रगति का मार्ग, कर चोरी रोकने का संकल्प। नियमों का पालन, जागरूकता, जीएसटी को सफल बनाना है कल्प। हमें मिलकर लिखना है, इस कर सुधार का नया इतिहास। जीएसटी को सफल बनाने का संकल्प, लेते हैं आज, हर देशवासी।
Poem on GST in Hindi जीएसटी की काव्य गाथा
- आया एक दिन, बदल गई रीति, एक टैक्स लगा, नाम हुआ जीएसटी:
- बजट पोटली से निकला भान, अप्रत्यक्ष करों का एकीकरण।
- वैट, एसटी, सीएसटी सब छोड़े, एक ही टैक्स, सब दुख मोचे।
- कभी सुखद कभी कड़वा, जीएसटी का ये खेल:
- व्यापारी खुश, सरल हुआ लेखा, पर उपभोक्ता बोला, “बढ़ गया मेरा खर्च!”
- महंगाई चढ़ी, जेबें हल्की, पर विकास की गाड़ी, चल पड़ी तेज चलती।
- कभी सरल कभी जटिल, जीएसटी का ये चक्रव्यूह:
- फॉर्म भरना, रिटर्न दाखिल करना, कर सलाहकार का दरवाजा खटखटाना।
- इनपुट टैक्स क्रेडिट, जीएसटीएन नंबर, शब्द सुने जो कभी न समझे थे।
- कभी राहत कभी बोझ, जीएसटी का ये सफर:
- छोटे व्यापारियों की उम्मीदें टूटीं, बड़े उद्योगपतियों की चांदी हुई।
- डिजिटल दुनिया में हुआ लेन-देन, नकद का चलन कम, भ्रष्टाचार का अंत।
- भविष्य का आईना, जीएसटी का ये संकेत:
- अर्थव्यवस्था को गति देना, भारत को मजबूत बनाना।
- एक राष्ट्र, एक कर, संघीय भावना का सम्मान, जीएसटी का ये वरदान।
Poem on GST in Hindi जीएसटी पर कविता, एक सिक्के के दो पहलू
कविता | व्याख्या |
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एक जुलाई सत्रहवां साल, बदला बाजार का सवाल। | 2017 में जीएसटी के लागू होने से भारतीय कर प्रणाली में एक बड़ा बदलाव आया। |
राज्यों का कर, केंद्र का कर, अब सब हुआ एक तार। | राज्य और केंद्र सरकार के अलग-अलग कर एक छतरी के नीचे आ गए। |
वस्तु, सेवा, सब मिला जुला, टैक्स बढ़ा, मगर सरल हुआ। | माल और सेवाओं पर एक समान कर लगाया गया, हालांकि कुल मिलाकर कर की दर बढ़ गई, लेकिन प्रक्रिया सरल हो गई। |
निर्यातक हुए खुशहाल, घरेलू उद्योग हुआ निढाल। | निर्यात करने वाले उद्योगों को राहत मिली, लेकिन कई घरेलू उद्योगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। |
इनपुट टैक्स क्रेडिट का खेल, कम हुआ बोझ, उम्मीद जेल। | इनपुट टैक्स क्रेडिट की व्यवस्था से लागत कम हुई, लेकिन नियमों की जटिलता से परेशानी भी हुई। |
रिटर्न दाखिल, गिनती-जोड़, महीने का हो जाता बंटाड। | जीएसटी रिटर्न दाखिल करना एक नियमित और समय लेने वाला काम बन गया। |
चोर बाजारी को लगा झटका, ईमानदारी का बढ़ा टका। | जीएसटी से काले धन की गतिविधियों को कम करने में मदद मिली। |
विकास का है इरादा सच्चा, पर राह में उलझनों का सच। | जीएसटी का उद्देश्य आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है, लेकिन रास्ते में चुनौतियां भी हैं। |
एक तरफ खुशियां, एक तरफ गम, जीएसटी की कहानी है यही सच। | जीएसटी के प्रभाव पक्ष और विपक्ष दोनों में देखे जा सकते हैं। |
समय के साथ सब होगा ठीक, बस चाहिए थोड़ा धैर्य, थोड़ा सीख। | समय के साथ और अनुभव के साथ, जीएसटी प्रणाली को सुधार कर इसे और कारगर बनाया जा सकता है। |